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#काव्य_कृति✍️

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हिंदी की अनुपम कविताओं, हिंदी गज़लों, नज़्मों को पाठकों तक पहुँचाने वाला अनूठा पटल✍️

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स्वर्ण-कलश निकल आया री !
सखी, स्वर्ण-कलश नभ पर छाया री!

नर्तन करते, द्रुम-तृण अविरल,
नभ नील सुरभी रस आह्लादित
संवेदन मन में, है रवि नभ में
उज्ज्वल प्रकाश लहराया री !
सखी, स्वर्ण-कलश उग आया री..!!

~ लावण्या शाह
🌄 ✍️
lavanya

स्वर्ण-कलश निकल आया री ! सखी, स्वर्ण-कलश नभ पर छाया री! नर्तन करते, द्रुम-तृण अविरल, नभ नील सुरभी रस आह्लादित संवेदन मन में, है रवि नभ में उज्ज्वल प्रकाश लहराया री ! सखी, स्वर्ण-कलश उग आया री..!! ~ लावण्या शाह #सुहानी_भोर 🌄 #काव्य_कृति ✍️ @choteesibaat
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आरती सिंह 🕊️(@AarTee33) 's Twitter Profile Photo

एक कलप सुर देखि दुखारे। समर जलंधर सन सब हारे॥
संभु कीन्ह संग्राम अपारा। दनुज महाबल मरइ न मारा॥

भावार्थ : एक कल्प में सब देवताओं को जलंधर दैत्य से युद्ध में हार जाने के कारण दुःखी देखकर शिव ने उसके साथ बड़ा घोर युद्ध किया, पर वह महाबली दैत्य मारे नहीं मरता था।

एक कलप सुर देखि दुखारे। समर जलंधर सन सब हारे॥ संभु कीन्ह संग्राम अपारा। दनुज महाबल मरइ न मारा॥ भावार्थ : एक कल्प में सब देवताओं को जलंधर दैत्य से युद्ध में हार जाने के कारण दुःखी देखकर शिव ने उसके साथ बड़ा घोर युद्ध किया, पर वह महाबली दैत्य मारे नहीं मरता था। #तुलसीदास…
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आरती सिंह 🕊️(@AarTee33) 's Twitter Profile Photo

प्राची ने खिड़की खोली
अब नवल सूर्य है जाग रहा
चिर परिचित कुसुमों के दल से
फिर मांग रहा है चाँद विदा!

धरती के घूँघर से जग कर
है कृषक पथ नाप रहा
बैलों के खुर की धूल भरा
नव यौवन सा है प्रात उगा..!!

जी
की हार्दिक शुभकामनाएं💐
✍️
lavanya

प्राची ने खिड़की खोली अब नवल सूर्य है जाग रहा चिर परिचित कुसुमों के दल से फिर मांग रहा है चाँद विदा! धरती के घूँघर से जग कर है कृषक पथ नाप रहा बैलों के खुर की धूल भरा नव यौवन सा है प्रात उगा..!! #लावण्या_शाह जी #जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं💐 #लेखनी ✍️ @choteesibaat
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लेखनी(@Lekhni_) 's Twitter Profile Photo

हे वेद प्रसविता, वीर जननी
हे ब्रह्मसुता, वरद वर दायिनी,
उन्नत ललाट जग तारिणी
हे ऋषिगण सेवित मानिनी
जय मां जय जय भारती !

जी
की हार्दिक शुभकामनाएं 💐
✍️
lavanya

हे वेद प्रसविता, वीर जननी हे ब्रह्मसुता, वरद वर दायिनी, उन्नत ललाट जग तारिणी हे ऋषिगण सेवित मानिनी जय मां जय जय भारती ! #लावण्या_शाह जी #जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं 💐 #लेखनी✍️ @choteesibaat
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ओ अदृश्य ‘रंगरेज’ ! बता दे
इतने रंग कहाँ से लाया
नभ से क्षिति तक मंत्रमुग्ध-
करने वाला संसार बसाया !

एक अकेले इंद्रधनुष में-
सात रंग के तार पिरोये
धरती के कण-कण में अनगिन-
छवियों वाले रंग समोये !


💐 ✍️

ओ अदृश्य ‘रंगरेज’ ! बता दे इतने रंग कहाँ से लाया नभ से क्षिति तक मंत्रमुग्ध- करने वाला संसार बसाया ! एक अकेले इंद्रधनुष में- सात रंग के तार पिरोये धरती के कण-कण में अनगिन- छवियों वाले रंग समोये ! #विमल_राजस्थानी #जन्मजयंती💐 #लेखनी✍️
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हे महान् ! तव विस्तृत उर से
दृढ़ परिरम्भण की क्षमता दो
तव स्नेहोष्ण हृदय का स्पन्दन
सुन पाने की आकुलता दो!

जिस से विवश रहस्य खोल दे
सत्य कि विद्युत विह्वलता दो
जो तुझ से संघर्ष कर सके
ऐसी उर में कोमलता दो..!!

~ गजानन माधव मुक्तिबोध
🙏
✍️

हे महान् ! तव विस्तृत उर से दृढ़ परिरम्भण की क्षमता दो तव स्नेहोष्ण हृदय का स्पन्दन सुन पाने की आकुलता दो! जिस से विवश रहस्य खोल दे सत्य कि विद्युत विह्वलता दो जो तुझ से संघर्ष कर सके ऐसी उर में कोमलता दो..!! ~ गजानन माधव मुक्तिबोध #प्रार्थना🙏 #काव्य_कृति✍️
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कस्यप अदिति तहाँ पितु माता। दसरथ कौसल्या बिख्याता॥
एक कलप एहि बिधि अवतारा। चरित्र पवित्र किए संसारा॥

भावार्थ- वहाँ (उस अवतार में) कश्यप और अदिति उनके माता-पिता हुए, जो दशरथ और कौसल्या के नाम से प्रसिद्ध थे। एक कल्प में इस प्रकार अवतार लेकर उन्होंने संसार में पवित्र लीलाएँ कीं।…

कस्यप अदिति तहाँ पितु माता। दसरथ कौसल्या बिख्याता॥ एक कलप एहि बिधि अवतारा। चरित्र पवित्र किए संसारा॥ भावार्थ- वहाँ (उस अवतार में) कश्यप और अदिति उनके माता-पिता हुए, जो दशरथ और कौसल्या के नाम से प्रसिद्ध थे। एक कल्प में इस प्रकार अवतार लेकर उन्होंने संसार में पवित्र लीलाएँ कीं।…
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और सब सौन्दर्य नश्वर हैं धरा के
अग्नि का सौन्दर्य मुझको खींचता है !

लाल लपटों के निमन्त्रण में लिखा है
-‘‘उर्ध्वगामी एक बस, मेरी शिखा है
जन्म मेरी ओर ही प्रतिक्षण बढ़ा है
ज्ञानियों ने बन्द आँखों से पढ़ा है।’’

(1921-2011)
💐 ✍️

और सब सौन्दर्य नश्वर हैं धरा के अग्नि का सौन्दर्य मुझको खींचता है ! लाल लपटों के निमन्त्रण में लिखा है -‘‘उर्ध्वगामी एक बस, मेरी शिखा है जन्म मेरी ओर ही प्रतिक्षण बढ़ा है ज्ञानियों ने बन्द आँखों से पढ़ा है।’’ #विमल_राजस्थानी (1921-2011) #जन्मजयंती💐 #लेखनी✍️
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सुख मिला :
उसे हम कह न सके।

दुख हुआ:
उसे हम सह न सके।

संस्पर्श बृहत का उतरा सुरसरि-सा :
हम बह न सके ।

यों बीत गया सब : हम मरे नहीं, पर हाय ! कदाचित
जीवित भी हम रह न सके..!!

~ अज्ञेय
✍️

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मुकुत न भए हते भगवाना। तीनि जनम द्विज बचन प्रवाना॥
एक बार तिन्ह के हित लागी। धरेउ सरीर भगत अनुरागी॥

भावार्थ : भगवान के द्वारा मारे जाने पर भी वे (हिरण्याक्ष और हिरण्यकशिपु) इसीलिए मुक्त नहीं हुए कि ब्राह्मण के वचन (शाप) का प्रमाण तीन जन्म के लिए था। अतः एक बार उनके कल्याण के लिए…

मुकुत न भए हते भगवाना। तीनि जनम द्विज बचन प्रवाना॥ एक बार तिन्ह के हित लागी। धरेउ सरीर भगत अनुरागी॥ भावार्थ : भगवान के द्वारा मारे जाने पर भी वे (हिरण्याक्ष और हिरण्यकशिपु) इसीलिए मुक्त नहीं हुए कि ब्राह्मण के वचन (शाप) का प्रमाण तीन जन्म के लिए था। अतः एक बार उनके कल्याण के लिए…
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हमें ध्येय के लिए
जीने, जूझने और
आवश्यकता पड़ने पर—
मरने के संकल्प को दोहराना है !

आग्नेय की
इस घड़ी में—
आइए, अर्जुन की तरह
उद्घोष करें :
‘‘न दैन्यं न पलायनम्।’’

~ अटल बिहारी वाजपेयी
✍️

हमें ध्येय के लिए जीने, जूझने और आवश्यकता पड़ने पर— मरने के संकल्प को दोहराना है ! आग्नेय #परीक्षा की इस घड़ी में— आइए, अर्जुन की तरह उद्घोष करें : ‘‘न दैन्यं न पलायनम्।’’ ~ अटल बिहारी वाजपेयी #परीक्षा #लेखनी ✍️
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अवनी के कण-कण, जल में,
पवन में अमृत-जीवन सरसाए !
निज कर्म-लीन तल्लीन हों
हर प्राणी झूमे नाचे गाए !

ना कोई व्यथित, मन-मन प्रमुदित हो,
निकट-निकट हर छोर हो !
यह भोर सुहानी भोर हो !!

~ राजेंद्र स्वर्णकार
🌄
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अवनी के कण-कण, जल में, पवन में अमृत-जीवन सरसाए ! निज कर्म-लीन तल्लीन हों हर प्राणी झूमे नाचे गाए ! ना कोई व्यथित, मन-मन प्रमुदित हो, निकट-निकट हर छोर हो ! यह भोर सुहानी भोर हो !! ~ राजेंद्र स्वर्णकार #सुहानी_भोर 🌄 #लेखनी ✍️
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निशि के अनंतर पूर्व में, उदित होता नित्य है,
चारों दिशा में रश्मियों में धारता आदित्य है ॥

सब प्राणियों के प्राण को, किरणों में धारण रवि करे,
वह सर्व लोकों, सृष्टि की, दिनमान मुखरित छवि करे॥

~ डॉ. मृदुल कीर्ति
🌞 ✍️

निशि के अनंतर #सूर्य पूर्व में, उदित होता नित्य है, चारों दिशा में रश्मियों में धारता आदित्य है ॥ सब प्राणियों के प्राण को, किरणों में धारण रवि करे, वह सर्व लोकों, सृष्टि की, दिनमान मुखरित छवि करे॥ ~ डॉ. मृदुल कीर्ति #सूर्य 🌞 #लेखनी ✍️
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उसने उगते सूरज को देखा
आसमान में छितरे बादलों के बीच से,
उषा के कँगूरे पर
लाल चुनरिया ओढ़ कर
धीमे-धीमे मुस्कुरा रही थी माँ !

उसने हरे पेड़ को देखा
असंख्य पीले फूलों से लदे
बरस रही थी मादक सुगन्ध,
समय की सलाइयों पर
वसन्त बुन रही थी माँ..!!

~ राजेश्वर वशिष्ठ
🌄

उसने उगते सूरज को देखा आसमान में छितरे बादलों के बीच से, उषा के कँगूरे पर लाल चुनरिया ओढ़ कर धीमे-धीमे मुस्कुरा रही थी माँ ! उसने हरे पेड़ को देखा असंख्य पीले फूलों से लदे बरस रही थी मादक सुगन्ध, समय की सलाइयों पर वसन्त बुन रही थी माँ..!! ~ राजेश्वर वशिष्ठ #सुहानी_भोर🌄
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हो के मायूस न यूं शाम-से ढलते रहिये
ज़िन्दगी भोर है सूरज-से निकलते रहिये !

एक ही ठांव पे ठहरेंगे तो थक जायेंगे
धीरे-धीरे ही सही राह पे चलते रहिये !

शाम को गिरता है तो सुबह संभल जाता है
आप सूरज की तरह गिर के संभलते रहिये !

~ कुंवर बैचेन
🌄
✍️

हो के मायूस न यूं शाम-से ढलते रहिये ज़िन्दगी भोर है सूरज-से निकलते रहिये ! एक ही ठांव पे ठहरेंगे तो थक जायेंगे धीरे-धीरे ही सही राह पे चलते रहिये ! शाम को गिरता है तो सुबह संभल जाता है आप सूरज की तरह गिर के संभलते रहिये ! ~ कुंवर बैचेन #सुहानी_भोर 🌄 #काव्य_कृति ✍️
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सुदर्शन जो न तजे, विष कोटि हरे प्रभु नाग नथैया!
ग्वाल सखा सब संग लिए, नित धेनु चरावत कृष्ण कन्हैया।

एक गणूँ कि अनेक तुम्हें, भ्रम होत सदा चित रास रचैया!
मोहन! भेद अभेद लगे, किस भाँति लिखूँ अति दीन सवैया।

~ अनुराधा पाण्डेय
🛞 ✍️
Narpati C Pareek 🇮🇳 लेखनी

#चक्र सुदर्शन जो न तजे, विष कोटि हरे प्रभु नाग नथैया! ग्वाल सखा सब संग लिए, नित धेनु चरावत कृष्ण कन्हैया। एक गणूँ कि अनेक तुम्हें, भ्रम होत सदा चित रास रचैया! मोहन! भेद अभेद लगे, किस भाँति लिखूँ अति दीन सवैया। ~ अनुराधा पाण्डेय #चक्र 🛞 #लेखनी ✍️ @pareeknc7 @Lekhni_
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हो के मायूस न यूं शाम-से ढलते रहिये
ज़िन्दगी भोर है सूरज-से निकलते रहिये !

एक ही ठांव पे ठहरेंगे तो थक जायेंगे
धीरे-धीरे ही सही राह पे चलते रहिये !

शाम को गिरता है तो सुबह संभल जाता है
आप सूरज की तरह गिर के संभलते रहिये !

~ कुंवर बैचेन
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हो के मायूस न यूं शाम-से ढलते रहिये ज़िन्दगी भोर है सूरज-से निकलते रहिये ! एक ही ठांव पे ठहरेंगे तो थक जायेंगे धीरे-धीरे ही सही राह पे चलते रहिये ! शाम को गिरता है तो सुबह संभल जाता है आप सूरज की तरह गिर के संभलते रहिये ! ~ कुंवर बैचेन #सुहानी_भोर 🌄 #काव्य_कृति ✍️
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