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Saurabh Chavan

@eyeknow_nothing

Centre for Historical Studies,JNU.
Fergussonian.🎓
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calendar_today30-07-2020 14:13:57

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इतना समय बीत जाने पर भी कोई नही बता सकता, वहाँ से कैसे गुजरा जाये। उसे कैसे कहा जाये। सहा जाये। वैसे भी कोई भी समय जो तुमने जिया है, तुम्हारे भीतर कभी नहीं मरता। ( आँख की झील से निर्मल )

इतना समय बीत जाने पर भी कोई नही बता सकता, वहाँ से कैसे गुजरा जाये। उसे कैसे कहा जाये। सहा जाये। वैसे भी कोई भी समय जो तुमने जिया है, तुम्हारे भीतर कभी नहीं मरता। 

( आँख की झील से निर्मल )
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अँधेरा होने लगा, तो बारिश ओझल हो गई। सिर्फ लैम्पपोस्ट की रोशनी में पता चलता था कि बूँदें अब भी झर रही हैं। 'एक चिथड़ा सुख'

अँधेरा होने लगा, तो बारिश ओझल हो गई। सिर्फ लैम्पपोस्ट की रोशनी में पता चलता था कि बूँदें अब भी झर रही हैं।

'एक चिथड़ा सुख'
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सबसे ख़तरनाक वह चांद होता है जो हर हत्‍याकांड के बाद वीरान हुए आंगनों में चढ़ता है ।

सबसे ख़तरनाक वह चांद होता है 
जो हर हत्‍याकांड के बाद 
वीरान हुए आंगनों में चढ़ता है ।
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उन दिनों उसके लिए जैसा अकबर रोड—वैसा बाबर रोड—कोई खास अन्तर नहीं दिखाई देता था।

उन दिनों उसके लिए जैसा अकबर रोड—वैसा बाबर रोड—कोई खास अन्तर नहीं दिखाई देता था।
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यह ख़याल कितनी सान्त्वना देता है कि हर दिन, वह चाहे कितना लम्बा, असह्य क्यों ना हो, उसका अन्त शाम में होगा। एक शीतल से झुटपुटे में। ( निर्मल वर्मा )

यह ख़याल कितनी सान्त्वना देता है कि हर दिन, वह चाहे कितना लम्बा, असह्य क्यों ना हो, उसका अन्त शाम में होगा। एक शीतल से झुटपुटे में।

( निर्मल वर्मा )
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स्मृति की यह विशेषता है (और इसमें वह स्वप्न से मिलती-जुलती है) कि उसमें शब्द अंत तक पहुँचने का महज़ रास्ता-भर नहीं हैं, वे घटना का अंत जानते हैं, अतः वे उसे अपने भीतर लेकर चलते हैं। - निर्मल वर्मा

स्मृति की यह विशेषता है (और इसमें वह स्वप्न से मिलती-जुलती है) कि उसमें शब्द अंत तक पहुँचने का महज़ रास्ता-भर नहीं हैं, वे घटना का अंत जानते हैं, अतः वे उसे अपने भीतर लेकर चलते हैं।

- निर्मल वर्मा
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बादलों के टुकड़े अलग-अलग अलसाए-से एक जगह स्थिर टँगे दिखाई देते थे, पर वे थे नहीं। कुछ देर बाद देखा, तो वे अपनी जगह से सरककर दूसरी जगह जाते जान पड़ते थे, जैसे नीले पानी पर कागज की सफेद किश्तियाँ तैर रही हो। ( निर्मल )

बादलों के टुकड़े अलग-अलग अलसाए-से एक जगह स्थिर टँगे दिखाई देते थे, पर वे थे नहीं। कुछ देर बाद देखा, तो वे अपनी जगह से सरककर दूसरी जगह जाते जान पड़ते थे, जैसे नीले पानी पर कागज की सफेद किश्तियाँ तैर रही हो।

( निर्मल )
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किंतु ऐसे भी लम्हे होते हैं, जब हम बहुत थक जाते हैं—स्मृतियों से भी—और तब ख़ाली आँखों के बीच का गुजरता हुआ रास्ता ही देखना भला लगता है… शायद, क्योंकि बीच का रास्ता हमेशा बीच में ही बना रहता है.. स्मृतिहीन और दायित्व की पीड़ा से अलग। - निर्मल वर्मा ('चीड़ों पर चांदनी)

किंतु ऐसे भी लम्हे होते हैं, जब हम बहुत थक जाते हैं—स्मृतियों से भी—और तब ख़ाली आँखों के बीच का गुजरता हुआ रास्ता ही देखना भला लगता है… शायद, क्योंकि बीच का रास्ता हमेशा बीच में ही बना रहता है.. स्मृतिहीन और दायित्व की पीड़ा से अलग। 

 - निर्मल वर्मा ('चीड़ों पर चांदनी)
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खम्भों पर बत्तियाँ खड़ी हैं सीठी ठिठक गये हैं मानों पल-छिन आने-जाने - अज्ञेय

खम्भों पर बत्तियाँ
खड़ी हैं सीठी
ठिठक गये हैं मानों
पल-छिन
आने-जाने

- अज्ञेय
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दिल की चोटों ने कभी चैन से रहने न दिया जब चली सर्द हवा मैं ने तुझे याद किया

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हम अपने घरों में ऐसे ही पर्दे लगवाऐंगे और में ये जान ने की भी कोशिश नहीं करुंगा की इन पर्दों की दुसरी तरफ दुनिया में क्या हो रहा है। #angryyoungmen