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कहीं नहीं,
तो
कविताओं में ही सही-

कुछ असंभव
पर-
घटता रहे ।।

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calendar_today17-10-2018 15:44:32

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कैसे हम सब रुकना चाहते हैं।

कि
बस जायें कहीं एक मकान लेके
इससे ज्यादा अरमान कहाँ ही होते हैं।

हम सब दौड़ रहे हैं
किसी ऐसे की तलाश में
जो हमें हाथ देकर रोक ले-

बोले
कि
'अब बस
आओ! अब घर चलते हैं'।।

(फ़ोटो : Uyare, 2019)

कैसे हम सब रुकना चाहते हैं। कि बस जायें कहीं एक मकान लेके इससे ज्यादा अरमान कहाँ ही होते हैं। हम सब दौड़ रहे हैं किसी ऐसे की तलाश में जो हमें हाथ देकर रोक ले- बोले कि 'अब बस आओ! अब घर चलते हैं'।। (फ़ोटो : Uyare, 2019)
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वो कहानियाँ जिन्हें समाज
नहीं स्वीकार पाया,
कपड़े बदल
कविताएँ बन निकलती हैं।

शाम ढले निकलती हैं,
अंधेरे में पहचानी न जातीं-
वो अक्सर नाम बदल निकलतीं हैं।।

(फ़ोटो : Close Up,1990)

वो कहानियाँ जिन्हें समाज नहीं स्वीकार पाया, कपड़े बदल कविताएँ बन निकलती हैं। शाम ढले निकलती हैं, अंधेरे में पहचानी न जातीं- वो अक्सर नाम बदल निकलतीं हैं।। (फ़ोटो : Close Up,1990) #पुरानीKavita
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प्रेम हम ढूंढते हैं
क्योंकि सिर्फ़
प्रेम ही
हमें फिर से
बच्चा बन जाने की
छूट देता है।

वास्तव में
हम बचपन तलाशती हुई
एक सभ्यता हैं
जो उसे प्रेम के नाम से बुलाती है।।
@kitabganj1

प्रेम हम ढूंढते हैं क्योंकि सिर्फ़ प्रेम ही हमें फिर से बच्चा बन जाने की छूट देता है। वास्तव में हम बचपन तलाशती हुई एक सभ्यता हैं जो उसे प्रेम के नाम से बुलाती है।। @kitabganj1
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इच्छा पूर्ति वाला जिन्न नहीं हूँ।

तुम्हारी इच्छाओं को रख कर
सर्वोपरि-
उनको अपने प्रेम की अभिलाषा
से पूर्ण तो कर देता हूँ मैं।

पर मैं मनुष्य भी तो हूँ
इच्छाओं से भरा
तुमसे ज्यादा भिन्न नहीं हूँ।।

(फ़ोटो : मसान)

इच्छा पूर्ति वाला जिन्न नहीं हूँ। तुम्हारी इच्छाओं को रख कर सर्वोपरि- उनको अपने प्रेम की अभिलाषा से पूर्ण तो कर देता हूँ मैं। पर मैं मनुष्य भी तो हूँ इच्छाओं से भरा तुमसे ज्यादा भिन्न नहीं हूँ।। (फ़ोटो : मसान)
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अखबार में खबर थी,
कि
फलां दो लोगों में
अनैतिक सबंध था।

ये एक सामाजिक
वाक्य था।

सबंध की नैतिकता
पर
उन दोनों के विचार
कभी नहीं लिए गए।।

(फ़ोटो : अज्ञात)

अखबार में खबर थी, कि फलां दो लोगों में अनैतिक सबंध था। ये एक सामाजिक वाक्य था। सबंध की नैतिकता पर उन दोनों के विचार कभी नहीं लिए गए।। (फ़ोटो : अज्ञात)
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प्रेम हम ढूंढते हैं
क्योंकि सिर्फ़
प्रेम ही
हमें फिर से
बच्चा बन जाने की
छूट देता है।

वास्तव में
हम बचपन तलाशती हुई
एक सभ्यता हैं
जो उसे प्रेम के नाम से बुलाती है।।

(फ़ोटो: मासूम, 1983)

प्रेम हम ढूंढते हैं क्योंकि सिर्फ़ प्रेम ही हमें फिर से बच्चा बन जाने की छूट देता है। वास्तव में हम बचपन तलाशती हुई एक सभ्यता हैं जो उसे प्रेम के नाम से बुलाती है।। (फ़ोटो: मासूम, 1983)
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Aditya Verma(@iamAdityaverma1) 's Twitter Profile Photo

उन लोगों के लिए
ये दुनिया
हमेशा नीरस रही
जिनको प्रतीक्षा करना नहीं आया

एक दूसरे के
इंतजार में बैठे
दो लोगों ने हमेशा
दुनिया को
थोड़ा और ज़्यादा सुंदर पाया।
Kitabganj

उन लोगों के लिए ये दुनिया हमेशा नीरस रही जिनको प्रतीक्षा करना नहीं आया एक दूसरे के इंतजार में बैठे दो लोगों ने हमेशा दुनिया को थोड़ा और ज़्यादा सुंदर पाया। @Kitabganj1
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तुम्हारे साथ रहकर
अक्सर मुझे लगा है
कि
हम असमर्थताओं से नहीं
सम्भावनाओं से घिरे हैं,

हर दिवार में द्वार बन सकता है
और
हर द्वार से पूरा का पूरा
पहाड़ गुज़र सकता है।

🔹सर्वेश्वरदयाल सक्सेना

तुम्हारे साथ रहकर अक्सर मुझे लगा है कि हम असमर्थताओं से नहीं सम्भावनाओं से घिरे हैं, हर दिवार में द्वार बन सकता है और हर द्वार से पूरा का पूरा पहाड़ गुज़र सकता है। 🔹सर्वेश्वरदयाल सक्सेना
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चाँद सितारों की बात करते,
एक दूसरे की बाहों में बुद्ध हो जाएंगे

आए जो नफरतों के दौर ग़र
हम, नदियों से
भिक्षा में थोड़ा प्रेम मांग लाएंगे.

Photo: Unknown

चाँद सितारों की बात करते, एक दूसरे की बाहों में बुद्ध हो जाएंगे आए जो नफरतों के दौर ग़र हम, नदियों से भिक्षा में थोड़ा प्रेम मांग लाएंगे. Photo: Unknown
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एक हाथ भर कमा लो,
दुनिया में-
इतनी भर ही दौलत है।

किसी को रहो तुम याद,
दुनिया में-
इतनी भर ही शोहरत है।।

(फ़ोटो -सत्यजीत रे की फ़िल्म से)

एक हाथ भर कमा लो, दुनिया में- इतनी भर ही दौलत है। किसी को रहो तुम याद, दुनिया में- इतनी भर ही शोहरत है।। (फ़ोटो -सत्यजीत रे की फ़िल्म से)
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Jayant Jigyasu(@jayantjigyasu) 's Twitter Profile Photo

कोई मेरे साथ चले / सर्वेश्वर दयाल सक्सेना

मैंने कब कहा
कोई मेरे साथ चले
चाहा ज़रूर!

अक्सर दरख़्तों के लिए
जूते सिलवा लाया
और उनके पास खड़ा रहा
वे अपनी हरियाली
अपने फल-फूल पर इतराते
अपनी चिड़ियों में उलझे रहे

मैं आगे बढ़ गया
अपने पैरों को
उनकी तरह

youtu.be/aF5h__6OfR4?si…

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हर रोज़
तुम नहीं आते हो-

पर हर रोज़ बीतने के बाद
मैं उस
रोज़ के ज्यादा करीब
पाता हूँ खुद को-

जिस रोज़ तुम आओगे।।

(आर्ट: अफगानी आर्टिस्ट-शमसिया हस्सानी)

हर रोज़ तुम नहीं आते हो- पर हर रोज़ बीतने के बाद मैं उस रोज़ के ज्यादा करीब पाता हूँ खुद को- जिस रोज़ तुम आओगे।। (आर्ट: अफगानी आर्टिस्ट-शमसिया हस्सानी)
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रुकने को

तुम्हारा शहर ढूंढती है

मेरे आंखों से
गुजरती है जो
एक रेलगाड़ी।।

(आर्ट: Alireza Karimi Moghaddam)

रुकने को तुम्हारा शहर ढूंढती है मेरे आंखों से गुजरती है जो एक रेलगाड़ी।। (आर्ट: Alireza Karimi Moghaddam)
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Lala ki beti(@Tejswani5) 's Twitter Profile Photo

यात्राएं
यात्रा हमेशा सुखद होती है,
क्योंकि वो ले जाती है हमे उन
सुखद स्वप्न में जो अपने अकेलेपन के दौरान
हम खुली आंखों से देखते है।
सिर्फ यात्राएं हमे एहसास कराती है,
कि हमारी यात्राएं हमेशा
लंबी नही होंगी,
सफर का अंत भी सुखद होगा

यात्राएं यात्रा हमेशा सुखद होती है, क्योंकि वो ले जाती है हमे उन सुखद स्वप्न में जो अपने अकेलेपन के दौरान हम खुली आंखों से देखते है। सिर्फ यात्राएं हमे एहसास कराती है, कि हमारी यात्राएं हमेशा लंबी नही होंगी, सफर का अंत भी सुखद होगा
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